" सफ़ेद गुलाब "

शहर की पुरानी तंग गलियों में बशीर मलिक की फूलों की दुकान सबसे मशहूर थी। शादियों, जलसों या किसी भी बड़े कार्यक्रम में फूलों की सजावट का नाम आता, तो लोग जानते थे—"ये काम बशीर मलिक के सिवा कोई नहीं कर सकता।" लाखों का कारोबार, बड़े-बड़े सेठों के ऑर्डर, और दिन-रात ग्राहकों की भीड़ . 
लेकिन उस भीड़ में एक चेहरा था, जो अलग था—डॉ. सत्यानंद दहिया।
करीब 6 ० -6 5  साल के, शांत और आंखों में किसी गहरी कहानी की परछाई।
वो हर सोमवार, लगभग एक ही समय पर आते—सिर्फ़ सफ़ेद गुलाब का एक छोटा-सा गुच्छा लेने।
उस दिन बारिश ज़ोरों से हो रही थी। दुकान का shutter आधा बंद था , और शब्बीर—बशीर का बेटा— काउंटर पे बैठा था  और खिड़की से बाहर झांकते हुए बोला, "Seriously? इतनी बारिश में भी आ रहे हैं?"
डॉ. दहिया दुकान के दरवाज़े तक पहुँचे भी नहीं थे कि शब्बीर ने कह दिया ,
"White roses are unavailable, uncle ।"
बशीर ने झटके से मुड़कर बेटे को घूरा,
"अरे… डॉ. साब, अंदर आइए। ज़रा थोड़ा संभल  के ?"
डॉ. दहिया बिना कुछ कहे, उम्मीद भरी नज़रों से दुकान के कोनों में सफ़ेद गुलाब ढूंढने लगे। बशीर ने उनकी मायूसी पढ़ ली।
"Actually, पिछले कुछ दिनों से बड़े-बड़े ऑर्डर आ रहे हैं… शादी का सीज़न है… और बारिश ने सप्लाई रोक रखी है। कुछ ख़ास फूल नहीं बचे ।"
डॉ. दहिया ने भारी सांस ली और दुकान के एक स्टूल पर बैठ गए।
"एक भी नहीं?" उन्होंने धीमे से पूछा। शब्बीर से रहा न गया, उसने मोबाइल से नज़र हटाए बिना कहा—
"कुछ और ले जाइए, Uncle, आजकल tulips  और  orchids  चलते हैं ।"
"तुम घर जाकर lunch  ले आओ जी ," बशीर ने झुंझलाकर बेटे से कहा, "ये आजकल के बच्चे…"
डॉ. दहिया कुछ पल चुप रहे।
फिर धीरे से बोले— " बशीर , सफ़ेद गुलाब  , सिर्फ सफ़ेद गुलाब   "
बशीर और डॉ दहिया एक दूसरे को ताकने लगे , बशीर हैरानी से और डॉ दहिया किसी उम्मीद से.

बशीर ने गहरी सांस ली और कहा,
"ज़रा अपना पता लिख दीजिए, डॉ. साहब… मैं कोशिश करूँगा कि आज ही सफ़ेद गुलाब पहुँचा दूँ।"
डॉ. दहिया ने चुपचाप जेब से पेन निकाला, एक पर्ची पर पता लिखा और बग़ैर कुछ कहे दुकान से निकल गए।
बशीर कुछ पल वहीं खड़ा रह गया—भौंचक्का, जैसे अभी-अभी कुछ उसके हाथ से फिसल गया हो। मन ही मन सोचता रहा—
क्या उन्होंने कुछ कहा जो मैं समझ नहीं पाया… या मैं ही बेवजह सोच रहा हूँ?
उसने झटपट दुकान का shutter  गिराया और गुलाब की तलाश में निकल पड़ा। बारिश से भीगी गलियों में खोजते हुए उसे अहसास हुआ—डॉ दहिया की आँखों में आंसूं थे , उसके लिए अब ये सिर्फ़ एक ऑर्डर नहीं था ।  
अंधेरा घिर आया था जब वह आखिरकार डॉ. दहिया के पते पर पहुँचा। दरवाज़े पर खटखटाहट देते समय उसके हाथ थोड़े काँप रहे थे— पता नहीं दूसरी तरफ़ क्या मिलेगा।
दरवाज़ा खुला।
डॉ. दहिया सामने खड़े थे, हल्की मुस्कान के साथ,
और गुलाब देखते ही उनकी आँखों में नमी-सी चमक उठी।
"अंदर आइए, बशीर…"
घर छोटा था, लेकिन सलीके से सजा हुआ। pastel  रंगों की दीवारें, पुराने फ़ोटो फ़्रेम,और सजावट में कहीं गहराई से बसी थी एक लंबी, थकी लेकिन सम्मानजनक ज़िंदगी की झलक।
डॉ. दहिया ने सोफ़े की तरफ़ इशारा करते हुए कहा,
"मेहनत करने के लिए शुक्रिया। "
"Sorry बस ये एक ही manage हो सका "
" बशीर , ये फूल मेरे पिता के लिए हैं… कभी रौबदार police officer हुआ करते थे लेकिन 
इस समय अपनी ज़िंदगी के लिए लड़ रहे हैं। Alzheimer’s है… मुझे, किसी को भी, पहचान नहीं पाते। हाँ पर सफ़ेद गुलाब का स्पर्श और खुशबू… अब भी पहचान लेते हैं। और इन्हे देखते ही मुस्कुराते हैं , इनसे बाते करते हैं. मैं इन्हे मुरझाने नहीं देता. 

ये कोमल सा सफ़ेद गुलाब , मेरी माँ के पसंदीदा फूल थे… जब तक ज़िंदा थी हर सोमवार मंदिर से लौटती हुए , सफ़ेद गुलाबों का गुच्छा लाती , घर को सजाती , वो अब नहीं हैं, लेकिन  ये सफ़ेद गुलाब मेरे माता पिता को जोड़े हुए  है। शायद इन दोनों की अपनी कोई कहानी जुडी हो इन सफ़ेद गुलाबों से  !
बशीर ने धीरे से पूछा,
"आप यहाँ अकेले रहते हैं?"
कुछ पल की चुप्पी के बाद, डॉ. दहिया बोले,

हाँ… बीमारी, लाचारी और बढ़ते खर्च का बोझ मेरी पत्नी और बच्चों के लिए सहना कठिन था, इसलिए वे अलग हो गए। मैंने अपनी ज़िंदगी में न जाने कितनी गलतियाँ कीं, लेकिन मेरे पिता ने मुझे कभी अकेला नहीं छोड़ा। अब उनकी देखभाल मेरी ज़िम्मेदारी है—अब मेरी बारी है।"

डॉ. दहिया ने गुलाब को बड़े नफ़ासत से थाम लिया—
जैसे कोई नाज़ुक चीज़ जिसे टूटने से बचाना हो —
और कमरे के उस दरवाज़े की तरफ़ बढ़े,
जहाँ शायद कोई अब भी सफ़ेद गुलाब का इंतज़ार कर रहा था…
--------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
बशीर की आँखें छलक गईं। उसने फूलों के कारोबार में देखा था कि लोग शादियों, आयोजनों, जन्मदिन की पार्टियों, यहाँ तक कि अपने पालतू जानवरों की महफ़िलों में भी बेहिसाब पैसा उड़ेल देते हैं। इस तमाम धन-दौलत के अशोभनीय बनावटी दिखावे के बीच आज उसने इंसानी भावनाओं की एक ऐसी सच्ची झलक देखी, जो उसकी रूह को छू गई।
उस क्षण को दिल में बसाए, वह दरवाज़े से बाहर निकला—आज 
ज़िंदगी ने उसे दो फ़रज़ सौंप दिए थे  सफ़ेद  गुलाबों की व्यवस्था और अपनी सुबह की दुआओं में 

डॉ. दहिया का नाम शामिल करना।  




Comments

  1. Nice story....very well written.

    ReplyDelete
    Replies
    1. What a talented writer , really great way of interpreting human emotions and presenting them in such a sublime and refreshing away that draws away from the cliché and gives the readers something new to read , finally 🙄

      Delete
  2. प्रिय अवलोकिता, तुम्हारी यह रचना ऐसे प्रतीत होती है, मानों अन्तस से निर्मित एक मार्मिक और भावपूर्ण अभिव्यक्ति है जो एक पुत्र का पिता के प्रति समर्पण दर्शाती है। साथ ही अपने कार्य के प्रति प्रतिबद्धता और नियमित ग्राहक के प्रति लगाव का प्रदर्शन भी करती है ।
    आधुनिकता और सात्विकता के सुमेल से यह प्रवाहमयी बन गयी है।
    प्रज्ञा उज्जवल ,प्रज्जावल ऊर्जावान हो,
    तुम्हारी लेखनी नित्यप्रति ऐसी अनुपम कृतियां रचती रहे ।
    मैंने बहुत से कामयाब लोगों को देखा है, लेकिन तुम्हारे विनम्र, विनीत, विनयशील और शालीन व्यक्तित्व की क़ायल हूँ। बहुत सराहनीय है कि तुमने इतनी सुंदर और बेहतरीन रचना से हमें अवगत कराया ।पढ़ कर दिल भावविभोर हो उठा ।
    बस, यही प्रार्थना है ईश्वर से, कि तुम्हारी यह मौलिकता सदैव बनी रहे और इसी तरह सफलता हासिल करते हुए तुम जीवन पथ में अग्रसर हों।
    🙏😊 मीनल
    Yutsi The Fighter

    ReplyDelete
  3. Soumya Pattajoshi3 September 2025 at 13:08

    Beautiful story…loved the way you expressed the depth of emotions ❤️❤️

    ReplyDelete

Post a Comment

If you enjoy my writing, please leave a review or a love note to show your support.
Thank you,
A.S.

The content in this blog is copyrighted and owned solely by the blogger. Please do not reproduce or copy any part of this blog.

Popular posts from this blog

कुछ स्वाल कुछ बातें - न बाप बड़ा , न भैया

Sometimes Silly Sometimes Sweet Short Stories #008 Letter To Son

The 8th Of March Visit blogadda.com to discover Indian blogs