कुछ स्वाल कुछ बातें - ताज

ताज कल भी आज  भी 




ताज

जिसे मैंने कई साल पहले देखा था। पिताजी की केन्द्रीय सरकार की नौकरी का सबसे बड़ा फैयादा 

 l t c था जिसके रहते साल दो साल में यहां वहां घूमना हो जाया करता था। उस साल पिताजी हमें दिल्ली , जयपुर आगरा का golden triangle घूमाने ले गए थे। 
सर्दी की सुबह थी , धुंध थी चारों ओर! मशहूर "lady diana "  संगमरर स्टूल पे बैठे तस्वीरें खींचना जोर शोर से जारी था। कभी भाई ,कभी पिताजी फुर्ती से  'खचाक  खचाक ' तस्वीरें खींच  रहे थे।  
मैं चुपचाप था। शायद वो चारबाग़ ,मुग़ल बाग़  ,फुहारे, रंग बिरंगे फूल , आस पास के  लाल बलुआ पत्थर  के मकबरे,शाही द्वार  मेरे युवा मन को लुभाने में असफल थे। 
फिर कुछ ऐसा घटा मानो  पर्दा छटता हो जैसे ।मद्धम मद्धम सूरज की कुछ सुनहरी  किरणे ताज पे पड़ी और पूरा नज़ारा बदल गया।  वो जिसकी तस्वीर सिर्फ किताबों में देखी थी जिसके बारे में केवल सुना था मेरे
सामने ,बिल्कुल सामने था । अद्भुत , आलोकिक , शानदार। 
विश्व का सातवां अजूबा, हां अजूबा ही तो था। विशाल , सफ़ेद दूधिया संगमर्रर - मोहब्बत की दास्ताँ सुनाता हुआ। 
कई घंटे बीत गए  पर मेरी नज़र ताज पे गड़ी रही। गुमसुम सा , बेसुध सा मैं कभी guide के कहे अनुसार मीनारों को देखता कभी आयतों को ,कभी मुग़ल इतिहास को समझने की कोशिश करता, कभी  पिताजी के कहने पर torch से नक्काशी जाली पे रोशनी करता।


अबे! चल न कब तक यू ही निहारता रहेगा? " भाई ने खीज भरे स्वर में कहा था।
"बस थोड़ी देर और ' मैंने  मुनहार  की। 
"नही अब और नही, फिर आ जाना जब तेरी  मोहब्बत तेरे साथ होगी और बैठे रहना यहीं " । भाई ने बोला था। 
"क्या भाई आप भी "कह कर मैंने exit  की ओर कदम बढ़ाये थे।

आज

जून की दुपहरी में तुम मेरे साथ खड़ी हो, चिलचिलाती धूप  से बेपरवाह, वही जहां मैने ताज को पहली बार देखा था। 

ठीक वैसी ही चमक तुम्हारी आँखों मे भी झलकती मैंने देखी। १५ साल के शादीशुदा जीवन में न जाने कितनी बार मैंने तुम्हे यहाँ लाने की कोशिश की थी। कभी जेब साथ नहीं देती तो कभी हालात।

काश ! मैं तुम्हे बता पाता  वर्षों पुरानी वो छोटी सी घटना ।


पर क्या तुम समझ पायोगी?

मेंरी नादानी का उपहास तो न करोगी?

कहूंगा एक दिन लेकिन जरूर यही पर क्योंकि ताज और मैं  दोनों जानते हैं  प्यार क्या है...!!!

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