कुछ सवाल , कुछ बातें - " बैरागी मन "
" बैरागी मन " "Congratulations ! अरे ! नीरू तुम तो celebrity होने जा रही हो । Book launch and what not! पता ही नही था लिखती भी हो?" मानवमंगल द्विवेदी ने सहजता से निरुपमा से कहा । "ऐसा कुछ नही है, बस यूं ही थोडा बहुत" नीरू धीमे से बोली । "रानीखेत के वातावरण में तो कोई भी लिख सकता है,पति का इतना बड़ा सरकारी बंगला है,काम तो अब तुम्हें कोई और है नहीं,मैं होता तो अब तक 2-4 किताबें लिख चुका होता!" मानवमंगल ने एक ही सांस में कहा । "तो भागे काहे जा रहे हैं , रुक जाओ, जो कमरा अच्छा लगे , जम जाओ" नीरू बात संभालते हुए बोलीं । "ना ना मुझसे तो न हो पायेगा , बहुत काम रहते हैं मुझे , तुम क्या जानो ?" मानवमंगल ने taxi में suitcase रखते हुए कहा। "किताब पढ़ के बतायेगा ज़रूर , आलोचना और प्रशंसा दोनों की प्रतीक्षा रहेगी '' नीरू ने हाथ जोड़कर नमस्कार किया और taxi के पास किसी उम्मीद से खड़ी हो गईं । "500 पन्नो की किताब लिखी है , पता नही पढ़ भी पाऊंगा? पढ़ने का शौक होता तो ...... चलो bye and take care " बोलत...