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आसान है क्या ?

शिकायत नहीं है मुझे , न ही दस्तूर बदलने की हिम्मत  , अस्थिर नही  हूँ , अधीर नहीं , अवसाद शायद , उदास शायद  , कहना  है बस , आसान नहीं , यूं अकेले रहना।  दीवार  पर टंगी  बेटी की बनाई, हैप्पी फैमिली  की पेन्टिंग,  अलमारी में लटकी तुम्हारी साड़ियां , कुछ बंद  मैगी के पैकेट , कुछ खुले बिस्कुट , बेटे का क्रिकेट का बल्ला, कह गया  था  रख लो , अगली छुट्टियों  में फिर जो खेलना है।  तुम्हारी लगाई गेंदे की  क्यारी सुनहरी हो चली , तुल्सी  भी हो गयी हरी पूरी , कमरा खाली ,दिल भरा भरा सा , आसान है क्या , यूं अकेले रहना ? टेक्नोलॉजी के साधन  अनेक है , नहीं प्रतिस्थापित कुछ भी कर पाया , तुम्हारा साथ।  चाहता हूँ लौट जाना घर, बच्चों को देखूं पढ़ते बढ़ते ,  माँ का बनू    सहारा , दूँ तुम्हे तुम्हारे हिस्से का प्यार  ,   किस से जा कर कहूँ   मन  का कौतूहल    , ...